कुण्डलिनी
कुण्डलिनी क्या है
मनुष्य के अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्ति को कुण्डलिनी कहा गया है। कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे जगत मे जीव की उत्पत्ति होती है। कुण्डलिनी सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर मेरूदण्ड के सबसे निचले भाग में मुलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई है। मुलाधार में सुषुप्त पड़ी हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना में प्रवेश करती है तब यह शक्ति अपने स्पर्श से स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र तथा आज्ञा चक्र को जाग्रत करते हुए मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार चक्र में पहुंच कर पूर्णता प्रदान करती है इसी क्रिया को पूर्ण कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है।
जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है मुलाधार चक्र में स्पंदन होने लगती है उस समय ऐसा प्रतित होता है जैसे विद्युत की तरंगे रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ घुमते हुए ऊपर की ओर बढ़ रहा है। साधकों के लिए यह एक अनोखा अनुभव होता है।
जब मुलाधार से कुण्डलिनी जाग्रत होती है तब साधक को अनेको प्रकार के अलौकिक अनुभव स्वतः होने लगते हैं। जैसे अनेकों प्रकार के दृष्य दिखाई देना अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देना, शरीर मे विद्युत के झटके आना, एक ही स्थान पर फुदकना, इत्यादि अनेकों प्रकार की हरकतें शरीर में होने लगती है। कई बार साधक को गुरू अथवा इष्ट के दर्शन भी होते हैं।
कुण्डलिनी शक्ति को जगाने के लिए प्राचीनतम ग्रंथों मे अनेकों प्रकार की पद्धतियों का उल्लेख मिलता है। जिसमें हटयोग ध्यानयोग, राजयोग, मत्रंयोग तथा शक्तिपात आदि के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने के अनेको प्रयोग मिलते हैं। परंतु मात्र भस्त्रिका प्राणायाम के द्वारा भी साधक कुछ महीनों के अभ्यास के बाद कुण्डलिनी जागरण की क्रिया में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है।
जब मनुष्य की कुण्डलीनी जाग्रत होती है तब वह ऊपर की ओर उठने लगती है तथा सभी चक्रों का भेदन करते हुए सहस्त्रार चक्र तक पंहुचने के लिए प्रयासरत होने लगती है। तब मनुष्य का मन संसारिक काम वासना से विरक्त होने लगता है और परम आनंद की अनुभुति होने लगती है। और मनुष्य के अंदर छुपे हुए रहस्य उजागर होने लगते हैं।
मनुष्यों के भीतर छुपे हुए असीम और अलौकिक शक्तियों को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। आज कल पश्चिमी वैज्ञानिकों के द्वारा शरीर में छुपे हुए रहस्यों को जानने के लिए अनेकों शोध किये जा रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तरह पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों मे अपार आश
Comments
Post a Comment