भ्रष्टाचार-एक गंभीर समस्या अथवा भ्रष्टाचार-कारण और निवारण
भ्रष्टाचार-एक गंभीर समस्या
अथवा
भ्रष्टाचार-कारण और निवारण
भूमिका – उपभोक्तावाद के इस दौर में मनुष्य हर तरह की सुख-सुविधा का उपभोग कर लेना चाहता है। इस मामले में वह समाज में किसी से पीछे नहीं रहना चाहता है। यही चाहत और दिखावे की प्रवृत्ति के कारण वह सुख पाने के हर तौर-तरीके अपनाने लगता है। इससे उसका नैतिक ह्रास होता है। इसी नैतिक हास के कारण व्यक्ति भ्रष्टाचार करने लगता है।
भ्रष्टाचार का अर्थ – भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-निकृष्ट श्रेणी का आचरण। भ्रष्टाचार के वश में आकर व्यक्ति नैतिकता का त्याग कर बैठता है और समाज एवं देश के हित का परित्याग कर अपनी जेबें भरने पर उतर आता है। जब व्यक्ति को जेबें भरने में खतरा नज़र आता है तो वह विभिन्न तरीकों से अपना स्वार्थ साधने लगता है। वह भाई-भतीजावाद तथा पक्षपात का रास्ता अपनाकर दूसरों का अहित करने लगता है।
भ्रष्टाचार के कारण – समाज में भ्रष्टाचार फैलने के अनेक कारण हैं। इनमें सबसे मुख्य कारण मानव का स्वभाव लालची होते जाना है। लालच के कारण उसका व्यवहार अर्थप्रधान हो गया है। वह हर काम में लाभ लेने का प्रयास करता है। इसके लिए वह पद और शक्ति का दुरुपयोग करने लगता है। कार्यालयों का वातावरण भ्रष्टाचार के कारण इतना दूषित हो गया है कि बाबुओं की बिना जेबें गरम किए काम करवाने की बात बेईमानी लगने लगती है। ऐसे में भ्रष्टाचार का बढ़ना स्वाभाविक ही है।
भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण बढ़ती जनसंख्या है, जिसके कारण सुविधाओं की कमी होती जा रही हैं। नौकरियों और सेवा के अवसरों की संख्या कम होती जाती है। दूसरी ओर इन्हें चाहने वालों की निरंतर बढ़ती कतार लंबी होती जा रही है। इसी बात का अनुचित फायदा नियोक्ता और बिचौलिए उठाने लगते हैं। पद के हिसाब से चढ़ावा माँगा जाने लगता है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है। भ्रष्टाचार का अन्य प्रमुख कारण मनुष्य में बढ़ती धनसंचय की प्रवृत्ति है।
वह निन्यानबे के फेर में पड़कर त्याग, परोपकार, उदारता बंधुत्व जैसे मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करने लगता है और अपने ही भाइयों की जेबें काटने का काम करने लगता है। वह चाहता है कि उसे पैसा मिले, चाहे जैसे भी। भ्रष्टाचार का एक कारण हमारे कुछ माननीयों का नैतिक पतन भी है। वे भ्रष्टाचार से अरबोंखरबों की संपत्ति जोड़ लेते हैं। कानून भी ऐसे लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता हैं। ऐसे लोग बेईमान तथा नवभ्रष्ट लोगों के लिए नमूना बन जाते हैं।
भ्रष्टाचार के परिणाम – भ्रष्टाचार से समाज में अशांति, लोभ तथा नैतिक पतन को बढ़ावा मिलता है। मनुष्य देखता है कि उसके समाज और कभी उसी का समकक्ष हैसियत वाला व्यक्ति आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया तो वह अशांत हो उठता है। उसके मन में लोभ जागता है। इससे समाज में एक ऐसा वातावरण पैदा होता है जिससे बगावत की बू आने लगती है। इससे सामाजिक समरसता घटती जाती है। व्यक्ति नैतिक-अनैतिक आचरण का भेद करना भूलने लगता है।
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय – भ्रष्टाचार रोकने के लिए जहाँ सरकारी उपाय आवश्यक है, वहीं लोगों में नैतिक मूल्यों के उत्थान की भी आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह भ्रष्टाचारियों को कड़ी सज़ा दे, किंतु इसके लिए वह सत्ता पक्ष के भ्रष्टाचारियों की अनदेखी न करे तथा वह बदला लेने की नीयत को भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठाया कदम न बताए। इनके अलावा लोगों को अपने पद, सत्ता एवं शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
उपसंहार-आज भ्रष्टाचार समाज का नासूर बनता जा रहा है। इसे समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि हमारे नेतागण आदर्श आचरण करके समाज को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने का उदाहरण प्रस्तुत करें। लोग अपनी नैतिकता बनाए रखें, तभी इस नासूर का इलाज संभव है।
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